
आओ सुनाऊँ एक कहानी, जीवन की सच्चाई की।
रूठी किस्मत टूटे रिश्ते, और मौसम की अंगड़ाई की।
मैं आत्मबल से भरा हुआ, आसमान का आदी था।
पर खड़ा हुआ था जिस तख़्ते पर, वह अवसरवादी था।
उसने बोला डरो नही, तुम करो भरोसा इस भाई पर।
उसकी नियत समझ न आयी, मैं चढ़ने लगा ऊँचाई पर,
थोड़ी दूर चढ़ा अभी था, कि चिंता हुई सुरक्षा की।
लौटा नीचे जाल को बांधा, व्यवस्था हो गयी रक्षा की।
अब था नीचे जाल मेरे, साथ भरोसा उस भाई का।
आत्मबल का साहस मुझमें, क्या डर था ऊँचाई का।
कितने हवा के झोंके आये, कितनो ने प्रहार किया।
पर डिगा नही मैं अपने पथ से, डट कर प्रतिकार किया।
कामयाबियां आयी घर पर, भर भर कर उपहार दिया।
थोड़ा झुक कर थोड़ा तन कर, मैंने भी व्यवहार किया।
तभी अचानक तूफ़ां आया, तो पकड़ से हाँथ छूट गया।
जब नीचे गिरने लगा तभी, उस जाल का धागा टूट गया।
मैं खून से लथपथ पड़ा जमी पर, गिद्धों ने मुझे घेर लिया।
हाँथ बढ़ाया जाल की ओर तो जाल ने मुंह को फेर लिया।
मन भी जख्मी, तन भी जख्मी, बदन मेरा जब नोच लिया
था अधूरा साहस मेरा, पर जिंदा रहूंगा ये सोच लिया।
मैं उठा, धरा पर खड़ा हुआ, जब लड़ने को तैयार हुआ।
कान खड़े हुए गिद्धों के, जब पहला मेरा वार हुआ।
फिर झपटे मुझ पर झुंड बनाकर, मैंने भी प्रतिकार किया।
रिसता रहा लहू बदन से, पर मैं समर्पण से इनकार किया।
कितने मौसम गुजर गए पर, युद्ध अभी भी जारी है
बदन मेरा अब छलनी है, उम्मीद अभी भी भारी है।
- राजेश आनंद