इंसां हो तो इंसां बन कर इतना तो सलीका आना था।
लाख हो तीखापन बातो में पर, रखने का तरीका आना था।
इन तीखे नोक कटारों से, ये तन तो दण्डित हो पाए।
पर धार है ऐसी शब्दो में , की मन भी खंडित होजाये।
गिरना इतना की उठ पाओ, मर कर भी थोड़ी जान रहे।
ग़ैरत हो थोड़ी तुझमे अपनी, मुझमे अपना ईमान रहे।
कटुता हो लाख विचारो में, हे ‘आनंद’ इतना ध्यान रहे।
प्रश्नों की अपनी गरिमा हो, तो उत्तर में सम्मान रहे।
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