इतिहास दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है। तुम्हे क्या मिला मैंने क्या पाया? तुमने क्या कमाया मैंने क्या खोया? ये बातें आती है और चली जाती हैं… बाद में रह जाता है इतिहास।
इतिहास का निर्णय हमेशा उसके पक्ष में गया है जो शक्तिशाली था। इसने कभी उसका साथ नही दिया जो न्याय के साथ था… सत्य के साथ था। अगर ऐसा होता तो आज युद्ध जैसे हालात हमारे जम्मू कश्मीर में नही बल्कि चीन और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में हो रहा होता। हिन्दूशाही की शरहदे जो अफगानिस्तान तक थी वह कश्मीर तक नही सिकुड़ जाती और ऐसा इसलिए हुआ क्योकि भारत न्याय के साथ तो था मगर उसने शक्ति को कभी सम्मान नही दिया।
हमने कभी किसी पर आक्रमण नही किया, किसी के जीवन मूल्यों को नष्ट नही किया। हम न्याय को मानने वाले थे और शायद धर्म भी हमारे पक्ष में था मगर शक्ति हमारे साथ नही थी। इसलिए इतिहास ने हमें उसकी सजा दी। इतिहास ने हमेशा उसे सजा दी जो न्याय और धर्म को शक्ति से ज्यादा महत्व दिया। हालांकि इसका मतलब ये नही है कि न्याय और धर्म की तिलांजलि दे दी जाए मगर अगर शक्ति और न्याय में से किसी एक को चुनने का अवसर आये तो शक्ति को चुनना आवश्यक है। हम आंतरिक रूप से शांति, समृद्धि और खुशहाल भी तभी हो सकते हैं जब भारत शक्तिशाली हो।
भारत पर इतिहास में जिन्होंने ने भी आक्रमण किया अगर हम उनकी और भारत की शक्ति की तुलना करें तो शक्ति का शायद 1 औऱ 1000 का अनुपात भी नही रहा लेकिन उसके बाद भी उन्होंने भारत पर सैकड़ों वर्षों तक शाशन किया… क्यों? सोचा है आपने?
हम कल भी घर को अंदर में सजाने में इतने व्यस्त थे और आज भी है कि घर के बाहर की जर्जर होती दीवारों पर कभी ध्यान नही दिया। अगर गट्ठर में बँधी हुई लकड़िया हमेशा इस बात पर उलझी रहे कि कौन छोटी है और कौन धूप खा रही है तो बंधन उन्हें कितनी देर तक समेट कर रख सकता है? भारत का समाज भी ऐसे ही हमेशा से आंतरिक सुरक्षा के लिए खुद ही चुनौती बना रहा।
हमने भारत को मजबूत बनाने की बजाय खुद को मजबूत बनाने की लड़ाई में अपनी अर्जित शक्ति को अनवरत खोते रहे। जिसका परिणाम ये हुआ कि हमने अपनी जमीनें खोयी और आज दुनिया की 17% से ज्यादा आबादी जो भारत में है, दुनिया की कुल भूमि के 2.7% के हिस्से में सिमट गई है और अब भौगोलिक संसाधन खोने के बाद खुद को जिंदा रखने, रोजगार और सुविधाओं के लिए अपनो से ही संघर्ष जारी रखा हुआ है।