October 15, 2019 · Public
पूरे भारत मे एक के बाद एक राज्यो में भाजपा के जीतने का सिलसिला दिल्ली में आकर ठहर जाए तो इसमें किसी को कोई हैरानी नही होनी चाहिए और उसके कई ठोस कारण है। केजरीवाल के व्यक्तित्व पर आप जितने चाहो दाग मढ़ दो मग़र मनीष सिसोदिया द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गए सुधार अभूतपूर्व है जिन्हें दिल्ली इतनी आसानी से नज़रअंदाज नही कर पायेगी वहीं चुनाव के वक्त ही सही लेकिन केजरीवाल के जनसामान्य पर असर डालने वाले वादे और ताबड़तोड़ फैसले एक बार फिर लोअर और मिडल क्लास को प्रभावित करेंगे।हालांकि हो सकता है कि ये सब जीत के लिए पर्याप्त न हो मगर पूर्व में कांग्रेस के द्वारा तैयार की गई जमीन पर केजरीवाल के जीत की इमारत खड़ी हो सकती है।हो सकता है कि मोदी को जीत का देवता समझने वाले लोग केजरीवाल की जीत की संभावना पर हैरान हो मग़र सच यही है कि भाजपा की दिल्ली विधानसभा के चुनाव में हार के भी मजबूत आधार है। दिल्ली में घुसपैठियों की बसावट ऐसी और तादाद इतनी है कि वे वर्षो से दिल्ली के विधान सभा के चुनाव परिणाम को प्रभावित करते आये है। जो मजबूत से मजबूत स्थिति में भी भाजपा को सत्ता के करीब पहुचते पहुचते रोक देते हैं जबकि वहीं भाजपा नगर निगम में वर्षो से शाशन कर रही है। सब जानते है कि भाजपा हमेशा से गैरकानूनी नागरिकता और घुसपैठियों की ख़िलाफ़त करती आई है और आज भी वह घुसपैठियों के प्रति अपने सख्त तेवर बनाये हुए है जबकि यही घुसपैठिये हमेशा से कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे हैं जिसके चलते कांग्रेस ने हमेशा इनके प्रति नरम रवैय्या अपनाती रही और साथ ही उसने अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए विधानसभाओ की सीमाओं और आबादी को ध्यान में रखते हुए इन्हें कच्ची कालोनियों और झुग्गियों में न सिर्फ बसाया बल्कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोटर लिस्ट में उनके नाम जोड़वाये।जो केजरीवाल को समझते हैं वह इस बात को भी जानते हैं कि इस तरह की राजनीति में केजरवाल कांग्रेस से हमेशा दो कदम आगे रहें है अतः अपनी 49 दिन की सरकार और लोगो का भरोसा गवाने के बाद उन्होंने सबसे ज्यादा ध्यान कांग्रेस के इन्ही वोटरों पर दिया। उन्होंने अपने कार्यकर्त्ताओ को कांग्रेस के इन परंपरागत वोटरों के दरवाजे तक भेजा और उन्हें कांग्रेस की हार का न सिर्फ विश्वास दिलाया बल्कि ख़ुद को भाजपा का मुख्य प्रतिद्वंदी बताने में भी कामयाबी हासिल की जिसका असर ये हुआ कि भाजपा के खिलाफ वोट करने वाले वोटर पूरी सिद्दत के साथ केजरवाल के साथ खड़े हो गए और केजरीवाल न सिर्फ जीते बल्कि अपनी जीत से इतिहास रच दिया। हालांकि कि केजरीवाल की उस ऐतिहासिक जीत को लगभग पांच साल पूरे होने जा रहे है और इस बीच उन्होंने कई तरह आरोपो का सामना भी किया मगर तात्कालिक हालात में चुनावी गणित एक बार फिर खुद को दोहराने जा रही है। पूरे देश मे काँग्रेस जिस तरह खुद को जिंदा रखने के लिए संघर्ष कर रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि परंपरागत भाजपा विरोधी वोटर एक बार फिर कांग्रेस की बजाए केजरीवाल पर अपना दाव लगायेंगे और बहुत उम्मीद है कि केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दोबारा लौट आये।