भारतीय बामपंथ, हिन्दू संगठनों की जितनी सिद्दत से आलोचना करता है उतनी सिद्दत मुस्लिम संगठनों को लेकर उनमे नही दिखती। जबकि धर्मो को लेकर भेदभाव इस विचारधारा के मूल स्वभाव में नही है। प्रत्येक देश का बहुसंख्यक ही उस देश की सभ्यता का वाहक होता है और अगर आप दुनिया का इतिहास पढ़ेंगे तो पायेंगे कि बामपंथी किसी भी देश का हो वह हमेशा से उस देश की बहुसंख्यक आबादी के खिलाफ ही लड़ा है। और यह लड़ाई तब से लड़ी जा रही है जब से बामपंथ का जन्म हुआ है। बामपंथ हमेशा से एक विचारधारा के रूप में लोगो के बीच रखा गया मग़र सत्य ये है कि अपने उद्भव के कुछ समय पश्चात ही यह एक सभ्यता में परिवर्तित हो गया। जो दुनिया के हर देश की मूल सभ्यताओ और परंपराओं को कुचल कर उसकी जगह खुद को स्थापित करने की कोशिश करता रहा है। बामपंथ विचारधारा से ग्रसित व्यक्ति भी हमेशा इस भ्रम में जीता रहता है कि वह धार्मिक बोझ से आजादी ले रहा है जबकि वास्तव में वह उस देश की संस्कृति पर चोट कर रहा होता है।भारत में हिन्दू बहुसंख्यक है जो भारतीय संस्कृति का वाहक भी है और यही कारण है कि बामपंथी विचारधारा के लोग सबसे ज्यादा हमला भारतीय हिन्दुओ के खिलाफ ही करते हैं? जबकि यही बामपंथी विचारधारा के लोग पाकिस्तान में हिन्दुओ के साथ मजबूती से खड़े होते हैं।भारत मे पाकिस्तानी मूल के लेखक तारिक फतह, को कौन नही जानता। वह पाकिस्तान में बामपंथ के चैंपियन रह चुके हैं। उन्होंने पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुस्लिमकट्टरपंथ की जमकर खिलाफत की थी जिसकी वजह से पहले उन्हें जेल काटनी पड़ी और बाद में अपनी जान बचा कर पाकिस्तान से ही भागना पड़ा। तारिक फतह का हिन्दू प्रेम भी न तो लोगो से छिपा हुआ और न ही अस्वाभाविक है। यह बिल्कुल ऐसे ही है जैसे भारत के बामपंथ के अंदर आपको मुस्लिम प्रेम मिलेगा। जबकि दुनिया का हर बामपंथी जानता है कि किसी भी मुस्लिम देश मे आज के समय बामपंथ को दो गज जगह भी नसीब नही है। मुस्लिम देशों में बामपंथी, मुसलमानों के खिलाफ लड़ते लड़ते लगभग खत्म हो चुके है।
बामपंथ की नज़र में हिन्दू और मुस्लिम?
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