TV पर कुछ भेड़िये बैठ कर आपस मे बहस कर रहे है कि महिलाओं को भेड़ियों से कैसे बचाया जाय?
हैडलाइन चल रही है कि महिलाओं को सुरक्षा कब मिलेगी?पुलिस, अदालत, सरकार सबको कटघरे में खड़ा कर दिया गया है बस खुद को कटघरे में कब खड़ा करोगे भेड़ियों।
मैं पुरुष हूँ और पुरुष होने पर शर्मिंदा हूँ। मैं शर्मिंदा हूँ कि मेरे जैसे पुरुषों ने अपनी बच्चियों को घरों में छुपाकर, अपने भेड़िये बेटो को आजाद छोड़ दिया है।
मैं शर्मिंदा हूँ कि मेरे जैसे पुरुषों ने 5 मिनट देर से आने पर अपनी बेटी से तो पूँछ लिया कि अभी तक कहाँ थी मगर अपने बेटे को पूंछना भूल गया कि वह 5 घण्टे से कहाँ था?
मैं शर्मिंदा हूँ कि मेरे जैसे पुरुषों ने अपनी बेटी से तो कह दिया कि सावधान रहें कहीं आसपास कोई संदिग्ध तो नही है मगर बेटे को कहना भूल गया कि सड़क पर डरी हुई बेटी को सुरक्षित महसूस कराए।
मैं सचमुच पुरुष होने पर शर्मिन्दा हूँ, और इस बात पर तो और शर्मिंदा हूँ कि मेरी अवकात सिर्फ इतनी है कि मैं फेसबुक में ही लिख सकता हूँ, इस उम्मीद पर, काश दो पुरुष ही सही, भेड़िये बनने की जगह इंसान बन जाये और सड़क पर डरी हुई किसी दो लड़कियों के डर का कारण बनने की बजाए उनकी सुरक्षा का कारण बन जाये।