सरकारों में ही एक मात्र समस्या का कारण तलासने वाला ये समाज, खासकर वो लौंडे जो खुद से ज्यादा प्रशाशन जो गरियाने में जुटे हैं, इनसे कभी व्यक्तिगत मिलिए। चौराहों पर खड़े होकर पास से जा रही लड़की को देख कर जब इनका दोस्त कहता है कि ‘देख यार क्या माल है’ तो इन लौंडो में से कितने लोग मुस्कुराने की बजाए, अपने दोस्त को रोकते है या उसे समझाते है कि तेरी भी बहन इस समय कही टहल रही होगी, उसे भी कोई ऐसे ही घूर रहा होगा, इसलिए अपनी हवस को जरा संभाल कर रख।
समाज के दोगलेपन की यही सच्चाई है! हिम्मत है तो अपने दोस्तों को रोकिये और खुद को बदलिए। क्योकि ये बलात्कारी, आतंकी किसी न किसी के दोस्त, भाई, बेटे और बाप होंगे। एक बार आप अपनो को रोकना शुरू करेंगे, तो समाज मे कुछ भेड़िये कम पैदा होने लगेंगें। और अगर बलात्कार और महिलाओं के प्रति हिंसा को सियासी टूल की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं तो ऐसे ही इन नेताओं की टोली का हिस्सा बनते रहिये, जिन्हें दरअसल बलात्कार नही, बलात्कार की जगह किसकी सरकार है, इस बात से सिरोकार है और इनका विरोध करने या चुप रहने का फैसला भी इसी पर निर्भर है।