
2006 में आया छठा वेतन आयोग में अचानक कई गुना बढ़ा सरकारी वेतन, भरतीय अर्थव्यवस्था के मूल संरचना को पटरी से उतार दिया था। हालांकि सातवें वेतन आयोग में काफी हद तक इस अनुपातित बृद्धि को संभाला गया। जिसका परिणाम ये हुआ कि मोदी को सरकारी कर्मचारियों के असंतोष का शिकार भी होना पड़ा।

जो भारतीय अर्थव्यवस्था को समझते है वो जानते है कि भारत की अर्थव्यवस्था छोटे और मझले उद्दोगों पर केंद्रित है ऐसे में छड़े वेतन आयोग में बढ़ा अत्यधिक सरकारी वेतन छोटे और मझले उद्दोगों को अच्छे कर्मचारियों से विहीन करने लगा।
प्राइवेट और सरकारी वेतन में आया यह अंतर एक बेहतर इंजीनयर को प्राइमरी स्कूलों में अध्यापक बनने के लिए विवश कर दिया। एक अच्छा मैनेजर जो उद्दोगों में कम से कम लागत में बेहतर गुणवत्ता का प्रोडक्ट बना कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भेज कर भारत के लिए डॉलर ला सकता था वह किसी सरकारी आफिस में बाबू बनना ज्यादा पसंद किया।
इस सब का असर ये हुआ कि कम प्रतिभाशाली लोग प्राइवेट उद्दोगों से अधिक वेतन के उम्मीद करने लगे, और रही सही कसर कुछ सरकारों ने पूरी कर दी जिन्होंने मिनिमम वेतन का कानून थोप दिया।
अब छोटे उद्दोगों को प्रोडक्शन में अधिक लागत लगानी पड़ीे जिससे उसका प्रोडक्ट महंगा हुआ जिसे दुनिया की मार्किट में महंगा होने की वजह से जगह मिलनी बंद हो गयी। जिसका परिणाम ये हुआ कि सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला क्षेत्र बंद होने लगा और बेरोजगारी बढ़ने लगी। अर्थव्यबस्था के अर्थ तक को न समझने वाला कुछ छात्र या छुटभैया नेता आज दिख रहे प्रभाव के कारण को बिना समझे शोर मचाना शुरू कर दिया जो सचमुच दुखदायी है।
इस देश मे जब किसी दुष्परिणाम के कारण को लोग समझने लगे जायेगे उस दिन से सरकारे आज की बजाए भविष्य पर ध्यान देना शुरू कर देगी वरना जो सत्ता में आएगा वह 72000 जैसी स्कीमें निकाल कर सत्ता में आ जायेगी और उनके जाने के बाद दूसरी सरकारों को उन गुनाह के लिए गालियाँ सुननी पड़ेगी जिसे उसने किया ही नही।
#Rajesh_Aanand