एक बार एक नेता ने चुनाव से पहले घोषणा की कि चुनाव जीतने पर वह लोगो को मुफ्त में चश्मे देगा। फिर क्या था… पूरे देश मे एक बहस शुरू हो गयी। लोगो ने नेता जी से पूछना शुरू कर दिया कि इतने पैसे सरकार कहाँ से लाएगी? मीडिया के प्राइम टाइम में सवाल खड़े किए जाने लगे कि कौन सी सर्विस के बजट को काटा जाएगा? अखबारों में हेड लाइन छपने लगी कि टैक्स का बोझ अब किस वर्ग पर लादा जाएगा। अरे रुकिए रुकिए हैरान मत होइए ये घटना भारत की नही बल्कि यूरोप का एक छोटा सा देश नार्वे का है, जहाँ के लोग कार में बैठकर अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनने की बजाए कार को ही मजबूत और सुरक्षित बनाने में विश्वास करते हैं। उन्हें पता है कि देश का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होगा तो देश के लोग मजबूत होंगे, आय के साधन और संसाधन दोनों का विस्तार होगा तो लोगो की आमदनी बढ़ेगी… अर्थव्यवस्था रफ़्तार पकड़ेगी तो देश मूलभूत जरूरतों से निकल कर भविष्य की योजनाओं और आकाक्षाओं के लिए काम शुरू कर पायेगा.. लोग नौकरी से ज़्यादा इन्वेंशन और व्यवसाय की ओर आकर्षित होगें मग़र अफसोस भारत मे तो इन्वेंशन, साधन या संसाधन किस चिड़िया का नाम है कितनो को पता? पता है तो बस नौकरी… जो सरकारी हो तो अतिउत्तम। भारत मे हर रोज… हर चुनाव पर मुफ्त में बिजली पानी, टीवी, कुकर जैसी वस्तुओ या सेवाओ को देने की घोषणाएं की जाती है मग़र मजाल है जो कोई मर्द का बच्चा उनसे सवाल कर दे? नेता टैक्स के पैसे को ऐसे बांटते है जैसे उनके बाप ने कमा कर उनके पास छोड़ गए हो? और वो ऐसा करे भी क्यो न? भंडारे में दो पूड़ी के लिए लंबी कतारों में घंटो इंतज़ार करने वाला आदमी उनसे सवाल करने की बजाए उनसे मिलने वाले मुफ्त के माल के लिए पहले वोटिंग लाइन में खड़ा होता है और फिर माल के लिए? देश में टैक्स देना कानून है सो उसका पालन किये जा रहे है। यहाँ कोई पूछता है क्या कि मुफ्त में बाटे गए इस रकम की वजह से कौन से प्रोजेक्ट बन्द कर दिए जाएंगे या कौन सी सर्विस रोक दी जाएगी? चलो माना कि अभी अभी अंडो से निकले इन राजनीतिक चूजों को बाजार की इतनी समझ नही हो पाई है, मग़र कुछ मुद्दे हैं जिन्हें समझना कोई रॉकेट साइंस नही है मसलन नेताओ को गाली देने वाले लोग कभी खुद से पूछा है कि उनके लालच और निठल्लेपन ने ही नेताओ को ऐसा बना दिया है। जैसा समाज वैसे हुक्मरान, नेताओ को कौन सा अपनी खून पसीने की कमाई को बांटना है? अगर मुफ्त में बिजली देने से वोट मिल जाता है तो कौन इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने के लिए पसीना बहाये?भारत के लोगो खासकर उत्तर भारत के नौजवानों के माइंडसेट को समझना है तो ऐसे समझिए दफ्तर दफ्तर पसीना बहाने और मीडिया के सामने सरकारी सिस्टम के भ्रष्टाचार पर रोता हुआ वह छात्र जिसे एक सर्टिफिकेट बनवाने के लिए बाबू दश चक्कर लगवाता है, जब खुद सरकारी सिस्टम का हिस्सा बनता है तो वह भी वही शुरू कर देता है जिसका अभी तक वह शिकार रह चुका है।
सरकारी सिस्टम के भ्रष्टाचार पर रोता हुआ वह छात्र
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