आक्रांताओ ने कुचला पग पग, भारत की मूल विरासत को।
जो जोड़ न सके फिर भारत को, तू ऐसी छोड़ सियासत को।
संविधान की सपथ जो ली है, तो इसकी सीमा में रहना।
लेकिन नैतिकता के बंधन में, अनैतिकता को मत सहना।
नैतिकता की बात करे जो, तुम रख दो सम्मुख उसके दर्पण।
संविधान को रौंदा जिसने, उनका अब कर दो जल में अर्पण।
हटी है धारा तीन सौ सत्तर, ये तेरे साहस का जो परिचय है।
इतिहास रखेगा याद तुम्हे, अब तो रामलला भी गरिमामय है।
न फ़िकर करो जयचंदो की, गोरी काटेगा फिर उनके शीश।
तुम किला बना दो पृथ्वी का, तेरे साथ खड़ा है द्वारिकाधीश।
जो समझे जिस भाषा को, संवाद करो तुम वैसे ही।
उस पर फिर से वार करो, गद्दार खड़ा हो जैसे ही।
न्याय नियम सब अच्छे है, आदर्श समाज की स्थिति में।
सिद्धांतो का परित्याग करो, सिंद्धान्तरहित परिस्थिति में।
जीता जा सकता है छल को, छल की ही तीर कमानो से।
मत बनना तुम अब धर्मबीर, वरना छलनी होगे बाणों से।
विजय श्री लिखती इतिहास, सामर्थ्य पर तुम ध्यान धरो।
बीरगति की लालच में, मत अपना जीवन दान करो।
याद करो तुम मुगलो को, प्यासी जिनकी तलवारें थी।
उन्हें सत्कार से लाद दिया, अब तक जिनकी सरकारें थी।
खंड खंड है अब भी खंडहर श्रद्धांजलि उन्हें भी देनी होगी।
खड़े करने है जो टूटे खंभे, तो सत्ता भी हाथों में लेनी होगी।
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